Monday, January 10, 2022

वंदना

घार कलम की तीक्ष्ण करो माँ*
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धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ
स्वर में मृदु झंकार लिखूँ
भाव सरित अजस्र बहे माँ
जब मैं ,नव श्रृंगार लिखूँ

विनय मात, समदृष्टि दान दे
 भेद -भाव से दूर रहूँ
दर्द दिलों के पढ़ लूँ  सबके
 नेहिल ,मैं विस्तार लिखूँ

राग द्वेष सब हरण करो माँ 
सूरज सा उजियार लिखूँ
कालिख नफ़रत की मिट जाए
और बस प्यार ही प्यार लिखूँ

,भोज अहिल्या ,विक्रमनगरी सा
 मन का विस्तार लिखूँ
भोजपाल भोपाल से लेकर 
 धार तक ,धार ही धार लिखूँ

रगिनी स्वर्णकार
इन्दौर

Friday, January 7, 2022

ख्याल

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Tuesday, December 7, 2021

प्रीत पथ अनुगामिनी

प्रीत ही हूँ गुनगुनाती*
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हो रही प्रिय मिलन आतुर ,
लिख रही हूँ प्रणय पाती  ।
प्रीत - पथ अनुगामिनी मैं ,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।

स्वर मुखर होने लगे हैं,
साधना देती निमंत्रण ।
सुधि -सुमन महके हुए हैं,
कर गयी पीड़ा पलायन ।।

गीत लिखती भावनाएं 
धड़कनें संग स्वर मिलाती ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।

प्यास की पावन ऋचाएं
स्वाति के कुछ कण पियेंगी । 
तृप्तिक्षण ,अनुभूतियाँ फिर,
प्राण में भर कर जियेंगी ।।

आस  ही दीपक  बनी ,
अन्तर तमस को जगमगाती ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती ।।

उदित उम्मीदों का सूरज,
छँट गये कुहरे घनेरे ।
स्वर्णिम विहान बुला रहा ,
डालती खुशियाँ हैं डेरे ।।

मीत इन मधुरिम  क्षणों में ,
 सृष्टि ज्यों, लगती बराती  ।
प्रीत -पथ अनुगामिनी मैं,
प्रीत ही हूँ गुनगुनाती  ।।

रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)

Thursday, November 4, 2021

दीपावली

🙏🏻दीपावली की शुभकामनाएं!!!!👍 
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"करो न कैद, महलों में मुझे ,
झोपड़ी तक, बिखर जाने दो।
मैं तो किरण हूँ, दीप की ,
घाव अँधेरों के ,सहलाने दो।।"
✍️
रागिनी शर्मा,इन्दौर

Monday, August 30, 2021

दोहे



ब्रज की रज है पावनी,बसते  राधा श्याम ।
कण-कण पुलकित प्रेम में,पवन पुकारे श्याम

 मनभावन मन मोहना,मनहर मोहक रूप ।
नन्दगाँव का लाड़ला,अद्भुत रूप स्वरूप ।।

राधा ऐसी बावरी, छलिया माखन चोर ।
बाँसुरिया बैरिन भई, बनी हुई सिरमौर ।।

मीरा का वो कृष्ण है,राधा का है श्याम ।
दरसन की दीवानगी,जोगन रटती नाम ।।

अधरन पौंड़ी आप है,गरदन टेढ़ी होय ।
बाँसुरिया सौतन बनी,लाज शरम है खोय ।।

नील वसन फरिया कमर,पहन राधिका आय ।
यमुना तट कान्हा खड़े, मंद -मंद मुसकाय । ।

 मीठी- मीठी बंसरी,मोहक नन्द किशोर।
सुध बुध राधा खो गयी,मनवा हुआ विभोर ।।

तरु पर छिपकर बैठता,मोहन यमुना तीर ।
मगन गोपियाँ जब भयीं, चुरा गया तब चीर ।।

रागिनी स्वर्णकार(शर्मा)इन्दौर


Sunday, August 29, 2021

मुक्तक

 ख़ुमार ही ख़ुमार है ज़मीं से आसमान तक।

बिछी हुई बहार है ज़मीं से आसमान तक।।


कली  कली महक उठी जो शबनमी फुहार से,

 निखार ही निखार  है ज़मी से आसमान तक।।


#रागिनी स्वर्णकार(शर्मा)

इन्दौर

Sunday, July 18, 2021

धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ*

 धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ*

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धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ
स्वर में मृदु झंकार लिखूँ

भाव सरित अजस्र बहे माँ
जब मैं ,नव श्रृंगार लिखूँ

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विनय मात, समदृष्टि दान दे
भेद -भाव से दूर रहूँ
दर्द दिलों के पढ़ लूँ सबके
नेहिल ,मैं विस्तार लिखूँ

राग द्वेष सब हरण करो माँ
सूरज सा उजियार लिखूँ
कालिख नफ़रत की मिट जाए
और बस प्यार ही प्यार लिखूँ

,भोज अहिल्या ,विक्रमनगरी
में मन का विस्तार लिखूँ
भोजपाल भोपाल से लेकर
धार तक ,धार ही धार लिखूँ

रगिनी स्वर्णकार
इन्दौर

वंदना

घार कलम की तीक्ष्ण करो माँ* -----------–--------------- ------///--- धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ स्वर में मृदु झंकार लिखूँ भाव सरित अजस्र बहे...