घार कलम की तीक्ष्ण करो माँ*
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धार कलम की तीक्ष्ण करो माँ
स्वर में मृदु झंकार लिखूँ
भाव सरित अजस्र बहे माँ
जब मैं ,नव श्रृंगार लिखूँ
विनय मात, समदृष्टि दान दे
भेद -भाव से दूर रहूँ
दर्द दिलों के पढ़ लूँ सबके
नेहिल ,मैं विस्तार लिखूँ
राग द्वेष सब हरण करो माँ
सूरज सा उजियार लिखूँ
कालिख नफ़रत की मिट जाए
और बस प्यार ही प्यार लिखूँ
,भोज अहिल्या ,विक्रमनगरी सा
भोजपाल भोपाल से लेकर
धार तक ,धार ही धार लिखूँ
रगिनी स्वर्णकार
इन्दौर